Pen in our hands, Hope in our hearts

Thursday 11 September 2014

नहर गंध की

06:17 Posted by Unknown 3 comments
गंध की एक नहर तुम से मुझ तक बहती है
कितना कुछ अनछिना
कितना कुछ अनकहा
एक विश्व संवेदनाओं का बहा लाती है
तुम से मुझ तक
मुझ से तुम तक
हाँ
मुझ से तुम तक अविराम बहती है एक नहर गंध की
यही, शायद यही संगती है उस संबंध की
जिसे अर्थ देने को दर्पण पर झुकी लड़की
घंटों परेशान रहती है
गंध की नहर पर तैरकर में न सही
मेरा गीत आ सकता है
स्पर्श तुम्हारे एकांत का पा सकता है
यही, हाँ यही, परिणीती है इस संबंध की
बहती है तुम से मुझ तक एक नहर गंध की

(इस कविता के लेखक के बारे में बहुत ढूँढने की कोशिश की, पर कुछ नहीं मिला, मैंने नहीं लिखी है)

3 comments:

  1. कवि हैं अनिल राकेशी

    ReplyDelete
  2. कवि हैं अनिल राकेशी

    ReplyDelete
  3. कवि हैं अनिल राकेशी

    ReplyDelete