उसने आकाश में चमकती बिजली को आँखों में स्थाई रूप से कैद कर लिया था | उसकी आँखे की अग्नि अद्भूत उर्जा का संचार कर रही थी | चौड़ा मस्तक को देख ऐसा लगता था कि हजरो लोगों ने अपनी भाग्य की रेखाओ को उसके मस्तक में लोप कर दिया हो | उसकी भाषा ने सदियों से मौन वाणी को जीवित कर वायुमंडल में ध्वनि का तूफान खड़ा दिया था | ये उसकी मोहनी विद्या थी या लोगो की विवशता | जब वह हाथ उठता तो जमीन पर रेंगने वाले लोग असमान को अपनी आँखों में भर लेते थे | जब वो कदमताल करता तो हजारो लोग सजीव हो जाते | लोगों ने मरने के लिए, मिटने के लिए, उठाने के लिए, चलने के लिए, जागने के लिए, जीने के लिए, उसकी बात पर भरोषा किया | उस योधा ने सभी को विश्वास दिलाया कि उसका युद्ध सत्य की स्थापन के लिए है | दुष्टों के नाश के लिए है | जो लोग अपने जन्म पे पछताते है उन्हें इस इस निराशा से मुक्ति दिलाने के लिए है, उन्हें जीवन का वास्तविक मूल्य समझाने के लिए है | उसने सभी से संकल्प लेने के लिए आवाहन किया | उसके हुँकार से सभी मृत आत्माएं पुनर्जीवित हो उठी | लोगो के जयघोष से तो स्वर्ग में बैठे देवता की निंद्रा भी टूट गई होगी | उसकी बातो से लोगो को विश्वास हो चल था कि यही वो नेता है जो हमारा भाग्य परिवर्त कर सकता है | हमारे राष्ट्र को विश्व में प्रतिष्टित कर सकता है |
नेता के भाषण को सुन वहां खड़े उस तरुण का कंठ रुंध-सा गया | उसके नेत्र सजल हो उठे | उसके शारीर में तडित ने प्रलायात्मक गति से संचार किया | वह उस नेता के ओजस्वी भाषण को सुन अपना सर्वस्व नेवछावर कर देना चाहता था | उसके कदम अन्यास ही नेता की तरफ बढ़ने लगे | तरुण को अपनी तरफ बढ़ता देख नेता ने उसे गले से लगा लिया | पल भर के संवाद से नेता को यह भान हो गया कि यह कोई साधारण पुरुष नहीं है | इसमें भी युग पुरुष होने के लक्षण हैं |
नेता ने तरुण को आदेश दिया- उद्योग करो, हमें जीतना है, हमें सत्य की स्थापना करनी है | दुष्टों का दमन करना है | तरुण ने सूर्य को साक्षी मान नेता को स्थापित करने का संकल्प किया |
प्रथम दिन तरुण अहिस्ता – अहिस्ता अपने को दर्पण में देख कर श्रृंगार करना शुरू किया | ‘टोपी’ को मुकुट के सामान मस्तक पे धारण किया, नेता चित्र अंकित ‘मफलर’ को अंगवस्त्र की तरह गले में डाले, नेता चित्र अंकित ‘बैच’ को मैडल की तरह सीने पर सजाया, और हाथ में ‘प्रतिक चिन्ह’ तलवार की भांति ले लम्बे –लम्बे डग भरता हुआ कर्मक्षेत्र में आगे बढ़ा |
सभी बाधाओं को चतुरता से पार करता | दुष्टों के मार्ग में अनेक बाधा डालता | अपने सहयोगियों के प्रेम को हरता | उनके विस्वास को बढाता | उन्हें लड़ने के नए-नए गुर सिखाता | उसने नवसिखियों के सेना बना कर नेता द्वारा घोषित आसुरी सेना का मार्ग को रोक रखा था | नेता को विजेता बनाने के लिए तरुण ने विजय द्वार से दो पग पहले ही अपना कदम रोक लिए | उस विजय द्वार के चौखट से आगे अब नेता को सूत्र संभालना था | समय कुछ पल के लिए ठहर सा गया था | जय और पराजय के अंतर के बीच वह चौखट विशाल शिला के सामान था | उस तरुण के साथ हजारो तरुण, वृद्ध, नर- नारी अपलक काल चक्र के चौघडिया देख रहे थे | तभी अचानक नियति ने नेता को चौखट के उस पार ला कर खड़ा कर दिया | नेता विजेता बन गया | उसकी यश, उसकी कीर्ति सुदूर पाताल लोक तक पहुँच रही थी | पाताल में बसे नरकंकाल भी नेता का स्वस्तिक वाचन कर रहे थे |
एक दिन तरुण संतुष्ट और विजीत भाव में नेता के सामने प्रकट हुआ | नेता ने दोनों भुजाओ में तरुण को लपेट लिया |
वह बोल पड़ा “बड़ी उर्जा है तुझमे”
“मुझे प्रयास करना ही न पड़ा | सुखद कामना वाले लोग सहज ही मिल गए” तरुण ने हँस कर कहा |
“तुमने क्या किया है ?”
“बस राजनीति ”
“हाँ” |
“कहाँ ?”
“अपने काम में | मैंने जो भी पाया है राजनीति से ही पाया है”
“अरे वाह प्रिये” - नेता उल्लास से चीख उठा | आनंद में उसने तरुण को गले लगा लिया |
सभी बाधाओं को चतुरता से पार करता | दुष्टों के मार्ग में अनेक बाधा डालता | अपने सहयोगियों के प्रेम को हरता | उनके विस्वास को बढाता | उन्हें लड़ने के नए-नए गुर सिखाता | उसने नवसिखियों के सेना बना कर नेता द्वारा घोषित आसुरी सेना का मार्ग को रोक रखा था | नेता को विजेता बनाने के लिए तरुण ने विजय द्वार से दो पग पहले ही अपना कदम रोक लिए | उस विजय द्वार के चौखट से आगे अब नेता को सूत्र संभालना था | समय कुछ पल के लिए ठहर सा गया था | जय और पराजय के अंतर के बीच वह चौखट विशाल शिला के सामान था | उस तरुण के साथ हजारो तरुण, वृद्ध, नर- नारी अपलक काल चक्र के चौघडिया देख रहे थे | तभी अचानक नियति ने नेता को चौखट के उस पार ला कर खड़ा कर दिया | नेता विजेता बन गया | उसकी यश, उसकी कीर्ति सुदूर पाताल लोक तक पहुँच रही थी | पाताल में बसे नरकंकाल भी नेता का स्वस्तिक वाचन कर रहे थे |
एक दिन तरुण संतुष्ट और विजीत भाव में नेता के सामने प्रकट हुआ | नेता ने दोनों भुजाओ में तरुण को लपेट लिया |
वह बोल पड़ा “बड़ी उर्जा है तुझमे”
“मुझे प्रयास करना ही न पड़ा | सुखद कामना वाले लोग सहज ही मिल गए” तरुण ने हँस कर कहा |
“तुमने क्या किया है ?”
“बस राजनीति ”
“हाँ” |
“कहाँ ?”
“अपने काम में | मैंने जो भी पाया है राजनीति से ही पाया है”
“अरे वाह प्रिये” - नेता उल्लास से चीख उठा | आनंद में उसने तरुण को गले लगा लिया |
तरुण ने दोनों भुजाओ से नेता को लपेटते हुए बोला – “अब तो मै तेरा हूँ ”
नेता ने भुजा ढीली कर कहा – “ आज तू मेरा है | तू स्वछंद काम कर |”
“और आज के बाद ?”
“और आज के बाद ?”
“जैसा मेरा मन होगा | जैसा मुझे रुचेगा |”
तरुण ने अपनी भुजा ढीली करते हुए कहा – “रुक तनिक”
“अब नहीं |"
उसने धकेल कर तरुण को अपने से पृथक किया और हंसते हुए सोफे में धंस गया |
सूर्य क्षितिज पर झुक चला | तरुण धीरे से पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गया |
नेता ने तरुण की तरफ देखते हुए कहा -
“तू कर्मठ है |”
“सच”
“सच, ऐसा और नहीं देखा |”
“और कितने लोग मेरी तरह अपन सर्वस्व लुटा कर आये हैं ?”
“बहुत |”
“कितने ?”
“मैंने गिने तो नहीं”
“क्यों ”
“मुझे इसमें अभिरुचि नहीं है”
“मै तेरे जैसा बनाना चाहता हूँ”
“वाह, ऐसा भी कभी होता है ? मै नेता हूँ, नेताओ की यह मर्यादा नहीं |”
“कैसी मर्यादा ?”
“किसी को नेता बनाने की”
“तो मै ?”
“तू कर्मठ है, तेरी बुद्धि तीव्र है, तू मुझे जग में सुपूजित करने का मार्ग प्रशस्त कर”
“मै किसी दुसरे प्रदेश का शुभ करना चाहता हूँ”
“मै सभी प्रदेशो का अस्तित्व मिटाना चाहता हूँ | कोई भी प्रदेश न रहेगा सिर्फ एक प्रदेश रहेगा जिसे मै स्थापित करूँगा”
तरुण ने अपनी भुजा ढीली करते हुए कहा – “रुक तनिक”
“अब नहीं |"
उसने धकेल कर तरुण को अपने से पृथक किया और हंसते हुए सोफे में धंस गया |
सूर्य क्षितिज पर झुक चला | तरुण धीरे से पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गया |
नेता ने तरुण की तरफ देखते हुए कहा -
“तू कर्मठ है |”
“सच”
“सच, ऐसा और नहीं देखा |”
“और कितने लोग मेरी तरह अपन सर्वस्व लुटा कर आये हैं ?”
“बहुत |”
“कितने ?”
“मैंने गिने तो नहीं”
“क्यों ”
“मुझे इसमें अभिरुचि नहीं है”
“मै तेरे जैसा बनाना चाहता हूँ”
“वाह, ऐसा भी कभी होता है ? मै नेता हूँ, नेताओ की यह मर्यादा नहीं |”
“कैसी मर्यादा ?”
“किसी को नेता बनाने की”
“तो मै ?”
“तू कर्मठ है, तेरी बुद्धि तीव्र है, तू मुझे जग में सुपूजित करने का मार्ग प्रशस्त कर”
“मै किसी दुसरे प्रदेश का शुभ करना चाहता हूँ”
“मै सभी प्रदेशो का अस्तित्व मिटाना चाहता हूँ | कोई भी प्रदेश न रहेगा सिर्फ एक प्रदेश रहेगा जिसे मै स्थापित करूँगा”
“सिर्फ तुम”
“हाँ सिर्फ मै”
“मेरे लिए क्या आदेश है”
“तू समस्त पृथ्वी पर मेरा यश फैला”
“मै ही क्यों”
“क्यों की तेरी इक्षा है”
“मै अस्वीकार करू तो”
“हाँ सिर्फ मै”
“मेरे लिए क्या आदेश है”
“तू समस्त पृथ्वी पर मेरा यश फैला”
“मै ही क्यों”
“क्यों की तेरी इक्षा है”
“मै अस्वीकार करू तो”
“तू न प्रथम है न अंतिम | आगे तेरी इक्षा है”
तरुण की आँखे लाल हो चुकी थी | पता नहीं दुःख था या क्रोध |वह नेता की तरह सैकड़ो योद्धाओं का निर्माण चाहता था ताकि अल्पकाल में ही सम्पूर्ण भारत में शुभ का मंगलगान हो सके | वह ऐसी व्यवस्था के प्रति सजग लोगो के खोज
तरुण की आँखे लाल हो चुकी थी | पता नहीं दुःख था या क्रोध |वह नेता की तरह सैकड़ो योद्धाओं का निर्माण चाहता था ताकि अल्पकाल में ही सम्पूर्ण भारत में शुभ का मंगलगान हो सके | वह ऐसी व्यवस्था के प्रति सजग लोगो के खोज
का संकल्प किया | उसी क्षण नेता को छोड़ उन स्वस्तिक वाचन कर रहे नरकंकालो को रोकने पाताल लोक की तरफ अपना डग भरने लगा |
Aapke Lekh ka sheershak aur bhaav bahut pasand aaya mujhe. Bhartiye raajneeti me asankhya Tarun hain. hum jaise kai jo na to pratham hai na antim, bas Tarun hain.
ReplyDeleteMy definition of a Leader is very simple. A Leader isn't one who makes followers, a true Leader is the one who makes leaders.
Achhi koshish. Likhte rahiye..